लकीरें
सुनते हैं सबकी और करते हैं मन की,
क्योंकि हम कोई लकीर के फकीर ना।
पहले ही भांपते हैं, न रास्तों को नांपते हैं,
निकल जाए सांप फिर पीटते लकीर ना।
भूल से भी भूल हो, चाहे प्रतिकूल हो,
भूल जायें भूल भले जितनी बेपीर है।
भविष्य को निहारते हैं,बीते को विसारते हैं,
जैसे कि खीची कोई पानी पै लकीर है।
ना पायेंगे मर हम,गर समय की है मरहम,
भरता है धाव काहे मनुवा अधीर है।
समय से सिमटती है, धीरे धीरे मिटती हैं,
जैसे की लिखी कोई रेत पै लकीर हैै।
भाग्य से ही पायेगा, भाग कहाँ जायेगा,
भाग्य की लिखी मानों पत्थर की लकीर है।
विधि ने लिखी है , और विधिवत लिखी है,
मिटती ना विनोदी कभी हाथ की लकीर हैै।
Renu
23-Jan-2023 04:39 PM
👍👍🌺
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
23-Jan-2023 06:49 AM
बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ
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Swati chourasia
23-Jan-2023 06:31 AM
बहुत ही सुंदर रचना 👌
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